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ग़ज़ल
दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-वफ़ा नहीं किया
ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
इश्क़ है अपना पाएदार तेरी वफ़ा है उस्तुवार
हम तो हलाक-ए-वर्ज़िश-ए-फ़र्ज़-ए-मुहाल हो गए
जौन एलिया
ग़ज़ल
रक़ाबत 'इल्म ओ 'इरफ़ाँ में ग़लत-बीनी है मिम्बर की
कि वो हल्लाज की सूली को समझा है रक़ीब अपना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हलाक अंदाज़-ए-वस्ल करना कि पर्दा रह जाए कुछ हमारा
ग़म-ए-जुदाई में ख़ाक कर के कहीं अदू की ख़ुशी न करना
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हलाक-ए-इश्क़ हूँ यारों मुझे मारा मोहब्बत ने
मिरी ग़मगीं कहानी है उदासी से घिरा हूँ मैं