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ग़ज़ल
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
न जाने किस की निगाहों को ढूँडती है बहार
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
कुछ नहीं है ज़िंदगी में अब है ख़ाली ज़िंदगी
लग रहा है बन गई है इक सवाली ज़िंदगी
जावेद क़मर लियाक़ती
ग़ज़ल
लबालब कर दे ऐ साक़ी है ख़ाली मेरा पैमाना
सलामत दौर-ए-गर्दूं तक ये शीशा और ये मय-ख़ाना
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
अनवर पानीपती
ग़ज़ल
चमन की हर कली हर फूल मुस्काए तो बेहतर हो
अगर थोड़ा भी ये मंज़र बदल जाए तो बेहतर हो
सीमा विजयवर्गीय
ग़ज़ल
जी भरा आता है ख़ाली मय का प्याला दे गया
देखियो क्या आज हम को शोख़-बाला दे गया