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ग़ज़ल
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
यक़ीनी है घड़ी दो में मरीज़-ए-ग़म का मर जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
कोई समझे तो क्या समझे वो नैरंग-ए-नज़र क्या है
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
यहाँ नहीं है वहाँ नहीं है इधर नहीं है उधर नहीं है
मगर किसी तरह दिल नहीं मानता कि वो जल्वा-गर नहीं है
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
अख़लाक़ बन्दवी
ग़ज़ल
हम-वतन था आश्ना था रात-दिन मिलता था वो
उस में कुछ थी ऐसी बातें अजनबी लगता था वो