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ग़ज़ल
हुस्न को समझता है इश्क़ हम-ज़बाँ अपना
है हक़ीक़त ऐसी ही या है ये गुमाँ अपना
अली मंज़ूर हैदराबादी
ग़ज़ल
वो हम-सफ़र है मगर फिर भी हम-ज़बाँ तो नहीं
छुपा है मुझ से मगर ख़ुद पे भी अयाँ तो नहीं
नीलम भट्टी
ग़ज़ल
दिल की बातें लब पर आएँ भी तो सुनता कौन है
उठ गए सब हम-ख़याल-ओ-हम-ज़बाँ किस से कहें