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ग़ज़ल
क्या दिखाएँगे वो मुँह जा के ख़ुदा को 'हामिद'
दिल बुतों से जो लगाते हैं मुसलमाँ अपना
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
जनाब-ए-शैख़ भी हंगाम-ए-मय-कशी 'हामिद'
अदब से महफ़िल-ए-रिंदाँ में आ के बैठे हैं
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
मआल-ए-इश्क़ ऐ 'हामिद' जो कुछ होना था होता है
बुतों के जब्र सहता हूँ ख़ुदा का शुक्र करता हूँ
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
इख़्तियार आप को है दिल से सुनें या न सुनें
शे'र 'हामिद' का नहीं आयत-ए-क़ुरआँ कोई
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
दिल-ए-पुर-शौक़ को तड़पा गया कुछ और ऐ 'हामिद'
हया का अंजुमन में माना-ए-गुफ़्तार हो जाना
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
नाज़ उठाने को तो 'हामिद' भी वहाँ जा बैठे
अब सँभलता नहीं दिल उन से सँभालें क्यों कर
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
हमीं तन्हा नहीं हैं जुस्तुजू की दौड़ में लेकिन
हमीं से किस लिए फिर आज हर ज़र्रा सवाली है
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
खिलाए हुस्न ने क्या गुल कि 'हामिद' एक मुद्दत पर
पए-शिकवा खुले हैं अब लब-ए-ग़ुंचा-दहन दो दो
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-उल्फ़त से नहीं कुछ कम कशिश भी हुस्न की
बैठे बैठे दिल खिचा जाता है 'हामिद' सू-ए-दोस्त
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
चैन उसे कहीं नहीं फिरता है 'हामिद'-ए-हज़ीं
थामे हुए दिल-ओ-जिगर कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
सँभलना हो गया दुश्वार मुझ को और ऐ 'हामिद'
जो दिल को नोक-ए-तेग़-ए-अबरू-ए-ख़ुम्मार में देखा