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ग़ज़ल
ख़त के पुर्ज़े नामा-बर की लाश के हमराह हैं
किस ढिटाई से मिरे ख़त का जवाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मैं कहीं जाऊँ मेरे हम-रह उस की याद है
तुम मुझे तन्हा समझते हो तो मैं तन्हा नहीं