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ग़ज़ल
मेरा मुँह क्या देख रहा है देख इस काली रात को देख
मैं वही तेरा हमराही हूँ साथ मिरे चलना हो तो चल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
दीद के क़ाबिल है तो सही 'मजरूह' तिरी मस्ताना-रवी
गर्द-ए-हवा है रख़्त-ए-सफ़र रस्ते का शजर हम-राही है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
दीद के क़ाबिल है तो सही 'मजरूह' तिरी मस्ताना-रवी
गर्द-ए-हवा है रख़्त-ए-सफ़र रस्ते का शजर हम-राही है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
मयस्सर हो न जब तक बू-ए-ताज़ा-तर की हमराही
हवा की तरह गलियों से गुज़र अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
ताज़ा ओ ग़मनाक रखते आस और उम्मीद की सब कोंपलों को
और फिर हमराही-ए-बाद-ए-शबाना के लिए महताब होते
सरवत हुसैन
ग़ज़ल
लौ की ज़द में रहने वालो उन की ओर न देखो तुम
बादल की हमराही में जो अक्सर भीगे रहते हैं