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ग़ज़ल
अगर मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो राएगाँ कर दे
मैं जिस वरक़ पे मिलूँ उस की धज्जियाँ कर दे
हुसैन ख़ां दानिश
ग़ज़ल
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
मुरव्वत हुस्न-ए-आलम-गीर है मर्दान-ए-ग़ाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
होंटों पे क़र्ज़-ए-हर्फ़-ए-वफ़ा उम्र भर रहा
मक़रूज़ था सो चुप की सदा उम्र भर रहा
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
महकी शब आईना देखे अपने बिस्तर से बाहर
ख़्वाब का आलम रेज़ा रेज़ा चश्म-ए-मंज़र से बाहर
ज़काउद्दीन शायाँ
ग़ज़ल
हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
दर-ओ-दीवार को भी हाल सुनाने न दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
दुआ क़ुबूल हो या रब कि उम्र-ए-ख़िज़्र दराज़
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं
हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ार-ए-ग़म खटकते हैं