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ग़ज़ल
तुम्हारे हर्फ़-ए-तसल्ली से हल नहीं होगा
बताऊँ क्या कि मोहब्बत का मसअला नहीं है
मज़हर हुसैन सय्यद
ग़ज़ल
क्या किसी और से अब हर्फ़-ए-तसल्ली कहिए
रोइए ख़ुद से लिपट कर कि वबा के दिन हैं
अक़ील अब्बास जाफ़री
ग़ज़ल
हाँ हर्फ़-ए-तसल्ली के लिए था मैं परेशाँ
पहलू में मिरे दिल था कुहिस्ताँ तो नहीं था
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जो कभी हुस्न के होंटों पे न आया 'जामी'
हाए वो हर्फ़-ए-तसल्ली भी गराँ है अब के
ख़ुर्शीद अहमद जामी
ग़ज़ल
यूँ तो इक हर्फ़-ए-तसल्ली भी बड़ी शय है मगर
ऐसा लगता है वफ़ा बे-आबरू हो जाए है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दर्द की रात बढ़ी याद की क़ुर्बत में 'अदीब'
बन गया हर्फ़-ए-तसल्ली भी दवा आख़िर-ए-शब
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
आज भी हर्फ़-ए-तसल्ली है शिकस्त-ए-दिल पे तंज़
कितने जुमले हैं जो हर मौक़ा पे दोहराए गए
तालिब जोहरी
ग़ज़ल
रहने दे ये हर्फ़-ए-तसल्ली मेरी हिम्मत पस्त न कर
नाकामी ही में रस्ता हो ये भी तो हो सकता है
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
करता है लहू दिल को हर इक हर्फ़-ए-तसल्ली
कहने को तो यूँ क़ुर्बत-ए-ग़म-ख़्वार बहुत है