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ग़ज़ल
है हर्फ़-शनासी किसी आईने की मानिंद
पत्थर कोई पड़ जाए तो सब हर्फ़ बिखर जाएँ
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
ग़ज़ल
न ख़ुद-शनासी अगर हो तो क्या नशात-ए-इश्क़
रक़म न हो तो क्या हर्फ़-ए-नवा में रक्खा है
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
क़ैस का तुझ में जुनूँ जज़्बा-ए-मंसूर नहीं
वर्ना मंज़िल-गह-ए-दिलदार तो कुछ दूर नहीं