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ग़ज़ल
कम से कम दस्तार तो रहने दे सर पर मुफ़लिसी
घर के सारे राज़ बच्चों की ज़बाँ तक आ गए
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
कहाँ रग़बत रही है आज बच्चों को खिलौनों से
ये वो तबक़ा है जो अब चाक़ूओं से प्यार करता है
मुश्ताक़ अहज़न
ग़ज़ल
बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूँ
हाथों पर जलता सूरज है दिल में रात की रानी है
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी
ग़ज़ल
हम चाह कर भी ख़ुश नहीं रह पाए ज़ीस्त में
बचपन से हावी हो गईं हम पर उदासियाँ
संतोष पुरस्वानी संत
ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-हुस्न की पस्ती है उस का राज़ ऐ 'क़ाज़ी'
जिसे बच्चों से नफ़रत हो वो दस बच्चों की माँ क्यों हो
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
बता कर दूध जब पानी दिया था साथ रोटी के
यूँ माँ का रात फिर बच्चों को बहलाना ज़रूरी था
हेमा काण्डपाल हिया
ग़ज़ल
मिरी बच्ची रो रही है मैं अभी सुला के आई
ज़रा भाभी देखते रहना कहीं दूध उबल न जाए
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
निगाह-ए-बद न पड़ जाए कहीं सय्याद की या-रब
मैं अपने घोंसले में एक बच्चा छोड़ आया हूँ