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ग़ज़ल
सय्यदा फ़रहत
ग़ज़ल
कहाँ से ज़ेहन में आया ख़याल-ए-हिर्स-ओ-हवस
कहाँ से जिस्म ने पाया है आश्ना का शुऊ'र
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कहाँ से ज़ेहन में आया ख़याल-ए-हिर्स-ओ-हवस
कहाँ से जिस्म ने पाया है आश्ना का शुऊ'र