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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-जाँ से जुदा होने लगा था
'हसन' हम ने मगर दोनों को यकजा कर दिया है
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
'हसन' रातों को जब सब लोग मीठी नींद सोते हैं
तो इक ख़्वाब-आश्ना चेहरा हमें बेदार करता है
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
'हसन' जब लड़खड़ा कर अपने ही पाँव पे गिरना हो
तो फिर एड़ी पे इतनी देर तक घूमा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें
मुझ को मिरी दानिश मिरे अफ़्कार में देखें
फ़ातिमा हसन
ग़ज़ल
मिरे नगर की हसीं फ़ज़ाओ कहीं जो उन का निशान पाओ
तो पूछना ये कहाँ बसे वो कहाँ है उन का क़याम लिखना