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ग़ज़ल
हम जाह-ओ-हशम याँ का क्या कहिए कि क्या जाना
ख़ातिम को सुलैमाँ की अंगुश्तर-ए-पा जाना
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अगर क़ब्रें नज़र आतीं न दारा-ओ-सिकन्दर की
मुझे भी इश्तियाक़-ए-दौलत-ओ-जाह-ओ-हशम होता
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
उठ गया क़ौम से अशराफ़ के हैहात अफ़्सोस
'इशरत-ओ-'ऐश कहाँ जाह-ओ-हशम चारों एक
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
दुनिया का ये जाह-ओ-हशम ये मंसब ये जागीर है क्या
दौलत कैसी मुझ को मेरा कासा-ए-उसरत दे साईं
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
वक़्त इक ऐसा सिकंदर है जहाँ में जिस ने
अच्छे-अच्छों का यहाँ 'साद' हशम तोड़ दिया