aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "havaa.o.n"
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगामसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन हैवो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगामेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा हैमगर चराग़ ने लौ को सँभाल रक्खा है
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्याबजते रहें हवाओं से दर तुम को इस से क्या
जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहींउन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाए
मेरी शम्ओं को हवाओं ने बुझाया होगाये भी उन की ही शरारत हो ज़रूरी तो नहीं
खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होतेकोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है
मैं ये मानता हूँ मिरे दिए तिरी आँधियों ने बुझा दिएमगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है
सुना है उन्हें भी हवा लग गईहवाओं के जो रुख़ बदलते रहे
मैं हवाओं से कैसे पेश आऊँयही मौसम है क्या वहाँ जानाँ
फूलों का बिखरना तो मुक़द्दर ही था लेकिनकुछ इस में हवाओं की सियासत भी बहुत थी
वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा थाहवाओं का रुख़ दिखा रहा था
हवा तो हम-सफ़र ठहरी समझ में किस तरह आएहवाओं का हमारी राह में दीवार हो जाना
क्या ख़बर उन को कि दामन भी भड़क उठते हैंजो ज़माने की हवाओं से बचाते हैं चराग़
एक ज़रा सी जोत के बल पर अँधियारों से बैरपागल दिए हवाओं जैसी बातें करते हैं
शौक़-ए-रक़्स से जब तक उँगलियाँ नहीं खुलतींपाँव से हवाओं के बेड़ियाँ नहीं खुलतीं
क्या अजब ख़्वाहिशें उठती हैं हमारे दिल मेंकर के मुन्ना सा हवाओं में उछालें तुम को
खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत हैपरिंदा क्यूँ किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए
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