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ग़ज़ल
नो आसमाँ ख़ुर-ओ-मह सातों तबक़ ज़मीं के
रूह-ओ-हवास-ए-ख़मसा और शश-जहात तीसों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
पाँच ये मेरे हवास-ए-ख़मसा हैं दो जिस्म-ओ-जाँ
इश्क़ ने तक़्सीम पाई है बराबर सात में
सय्यद अाग़ा अली महर
ग़ज़ल
मोहम्मद मुबशशिर मेयो
ग़ज़ल
हुए सब जम्अ' मज़मूँ 'ज़ौक़' दीवान-ए-दो-आलम के
हवास-ए-ख़मसा हैं इंसाँ के वो बंद-ए-मुख़म्मस में
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
दुख पहुँचे जो कुछ तुम को तुम्हारी ये सज़ा है
क्यूँ उस के 'हवस' आशिक़-ए-जाँ-बाज़ हुए तुम
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
जो नंग-ए-इश्क़ हैं वो बुल-हवस फ़रियाद करते हैं
लब-ए-ज़ख़्म-ए-'हवस' से कब सदा-ए-ज़ींहार आई
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
गिरह साँसों में डाली है 'हवस' इफ़रात-ए-गिर्या ने
न आह-ए-ना-तवाँ आने को लब तक नर्दबाँ ढूँढे
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
शायद मैं उसे देखूँ 'हवस' बा-लब-ए-ख़ंदाँ
जाता हूँ इस उम्मीद पे गिर्यां पस-ए-महमिल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
हर घड़ी तुम जो मलामत मुझे करते हो 'हवस'
आप मैं दाम-ए-मोहब्बत में फँसा तुम को क्या
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
बज़्म-ए-हस्ती में तू बैठा है 'हवस' क्या ग़ाफ़िल
कुछ जो करना है तू कर उम्र चली जाती है
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
इस में ज़ियाँ है जान का सुनता है ऐ 'हवस'
ज़िन्हार बार-ए-इश्क़ न सर पर उठाइयो
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
जोड़ना उन का निहायत ऐ 'हवस' दुश्वार था
दिल के टुकड़े देख मेरे शीशागर ने क्या कहा