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ग़ज़ल
सुख़नवर जब सुनाते हैं मोहब्बत हीर राँझा की
तसव्वुर में तिरा करता हूँ उन की हर बयानी में
साहेब श्रेय
ग़ज़ल
आबिद उमर
ग़ज़ल
कि जिस के सबब हीर राँझा ज़माने के दुश्मन बने थे
उसी इश्क़ का भूत तुम पर चढ़ा है तुम्हें ये पता है
सोहिल बरेलवी
ग़ज़ल
कितने ही रंग खुले जाते हैं शादाबी में
तुम ने देखा है मुझे आलम-ए-बे-ख़्वाबी में