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ग़ज़ल
दश्त में क़हत-ए-आब से हिजरत-ए-ताइराँ के बा'द
सैर-पसंद-ओ-तर-नफ़स अब्र के क़ाफ़िले गए
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
सय्याद को तो ख़्वाब-ए-तग़ाफ़ुल से काम है
अहवाल-ए-ताइरान-ए-गिरफ़्तार हो सो हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
इक ख़्वाब-ए-ताएरान-ए-बहाराँ है उस की आँख
ताबीर-ए-अब्र-ओ-बाद से लबरेज़ अभी से है