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ग़ज़ल
जो गुज़र दुश्मन है उस का रहगुज़र रक्खा है नाम
ज़ात से अपनी न हिलने का सफ़र रक्खा है नाम
जौन एलिया
ग़ज़ल
जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
अब होंट नहीं हिलने पाते और पहरों बातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
क्यूँ ज़मीं हिलने लगी है क्यूँ परेशाँ रूह है
कौन घबरा के चला आया मिरे मदफ़न के पास