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ग़ज़ल
हिन्दू मुस्लिम के लिए कोई सज़ा क्यों माँगूँ
ज़ुल्म इंसान पे हो ऐसी दुआ क्यों माँगूँ
ज़मीर अहमद ख़ाँ
ग़ज़ल
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बरसों से हैं साथ रहते
भाई को फिर भाई से अब क्यों लड़ाया जा रहा है
गुरबीर छाबरा
ग़ज़ल
मेरे अहद के बच्चे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं
अमन की बगिया में है अब तो हर पल मौसम दंगों का
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
मुस्लिम मलेगाँवी
ग़ज़ल
मना लेंगे हरम वालों को जा कर फिर कभी 'मुस्लिम'
अभी तो राम करना है बुतान-ए-फ़ित्ना-सामाँ को
मुस्लिम अंसारी
ग़ज़ल
कहते हैं जिस को 'नज़ीर' सुनिए टुक उस का बयाँ
था वो मोअल्लिम ग़रीब बुज़दिल ओ तरसंदा-जाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहते हैं जिस को 'नज़ीर' सुनिए टुक इस का बयाँ
था वो मोअल्लिम ग़रीब बुज़दिल-ओ-तरसंदा-जाँ
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
न माना मेरा कहना दिल गया क्यूँ दाद-ख़्वाही को
सज़ा देते हैं वाँ मुजरिम बना कर बे-गुनाही को