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ग़ज़ल
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बजा कि आँख में नींदों के सिलसिले भी नहीं
शिकस्त-ए-ख़्वाब के अब मुझ में हौसले भी नहीं
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
सवाल करने के हौसले से जवाब देने के फ़ैसले तक
जो वक़्फ़ा-ए-सब्र आ गया था उसी की लज़्ज़त में आ बसा हूँ
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
हौसले देता है ये अब्र-ए-गुरेज़ाँ क्या क्या
ज़िंदा हूँ दश्त में हम उस के सहारे जैसे