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ग़ज़ल
फिर हुजूम-ए-ग़म-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
फिर मिरी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
ग़ज़ल
इक हुजूम-ए-ग़म-ओ-कुलफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे
जान पर नित-नई आफ़त है ख़ुदा ख़ैर करे
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
बोले वो हुजूम-ए-ग़म-ओ-हसरत को जो देखा
क्यूँ इस में रहें हम कि है काशाना किसी का
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म में बहर-हाल मुस्कुराना है
हवा के रुख़ पे चराग़-ए-यक़ीं जलाना है
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म में जीना किस क़दर सब्र आज़मा होता
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से ये दिल ना-आश्ना होता