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ग़ज़ल
अगर आए नहीं ऐ फ़ारहा अब भी तुम्हारे ख़त
तो मैं ने 'जौन' सा हुलिया बना लेना है रो रो के
अशरफ़ जहाँगीर
ग़ज़ल
करते हैं बहुत बात ये वीरानी-ए-दिल की
उन लोगों ने शायद मिरा हुलिया नहीं देखा
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
जलन आँखों में सूखे लब ग़ुबार-ए-ज़िंदगी रुख़ पर
थकन की दास्ताँ कहता है हुलिया सर-ब-सर तेरा