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ग़ज़ल
हर नज़ारे में नुमायाँ हुआ जल्वा उन का
हुस्न जब हुस्न-परस्तों से छुपाने निकले
दानियाल हैदर जाफ़री
ग़ज़ल
जाँ-कनी हुस्न-परस्तों को गिराँ क्या गुज़रे
भेस में हूर-ए-बहिश्ती के क़ज़ा आती है
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
हुस्न-परस्ती हज़रत-ए-नासेह आप के बस की बात नहीं
अपना अपना ज़र्फ़-ए-नज़र है 'इश्क़-ओ-हवस की बात नहीं
अनवर अली ख़ान सोज़
ग़ज़ल
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अब हमें दे दो ये मिट्टी है हमारे काम की
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
इस हुस्न-परस्ती का यही हश्र है होना
कुल उम्र मिरी इश्क़ में बर्बाद रहेगी