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ग़ज़ल
इन परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम
क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न कर दें मुझ को मजबूर-ए-नवाँ फ़िरदौस में हूरें
मिरा सोज़-ए-दरूँ फिर गर्मी-ए-महफ़िल न बन जाए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लाख दुनिया में हसीं हों लाख हूरें ख़ुल्द में
मुझ को जो तू है वो कोई दूसरा हो जाएगा
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ
प्यारी प्यारी है कलाई प्यारी प्यारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हूरें नहीं 'मोमिन' के नसीबों में जो होतीं
बुत-ख़ाने ही से क्यूँ ये बद-अंजाम निकलता
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
फ़िल-हक़ीक़त ये भी कम गुलज़ार-ए-जन्नत से नहीं
हूरें फिरती हैं सर-ए-बाज़ार क़ैसर-बाग़ में
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
जन्नत की हूरें आईं हैं 'माइल' दबाने मेरे पाँव
बैठी हैं नज़दीक-ए-कफ़न एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
दोनों जहाँ में ख़िदमत तेरी ख़ादिम को मख़दूम बनाए
परियाँ जिस के पाँव दबाएँ हूरें जिस का काम करें
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
हूरें ले जाएँगी पैराहन बसाने के लिए
इत्र ख़ाक-ए-पाक-ए-तैबा का तो ऐ अत्तार खींच