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ग़ज़ल
दिल कितना आबाद हुआ जब दीद के घर बरबाद हुए
वो बिछड़ा और ध्यान में उस के सौ मौसम ईजाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
कितने यार हैं फिर भी 'मुनीर' इस आबादी में अकेला है
अपने ही ग़म के नश्शे से अपना जी बहलाता है
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
सारे सपेरे वीरानों में घूम रहे हैं बीन लिए
आबादी में रहने वाले साँप बड़े ज़हरीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
हम से नाम जुनूँ का क़ाइम हम से दश्त की आबादी
हम से दर्द का शिकवा करते हम को ज़ख़्म दिखाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चार घरों के एक मोहल्ले के बाहर भी है आबादी
जैसी तुम्हें दिखाई दी है सब की वही नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दिल में वस्ल के अरमाँ भी थे और मलाल-ए-फ़ुर्क़त भी
आबादी की आबादी वीराने का वीराना था
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
वहाँ हैं हम जहाँ 'बेदम' न वीराना न बस्ती है
न पाबंदी न आज़ादी न हुश्यारी न मस्ती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
जैसे रस्म अदा करते हों शहरों की आबादी में
सुब्ह को घर से दूर निकल कर शाम को वापस आने में