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ग़ज़ल
वो रंग-साज़ रहा ग़र्क़ फ़िक्र-ए-रंगीं में
वो हुस्न-ए-ज़ीस्त में इक दिल-नशीं इदारा हुआ
मेह्र हुसैन नक़वी
ग़ज़ल
ज़माने के दिए इक ही दिए से जलते हैं लेकिन
बिसात-ए-फ़र्द-ए-वाहिद क्या इदारा जगमगाता है
इमरान अज़ीम
ग़ज़ल
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है