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ग़ज़ल
हैं मन-ओ-तू जलवा-हा-ए-हुस्न-ए-वहदत का हिजाब
शम-ए-बज़्म-ए-ख़ुद-शनासी नूर-ए-इरफ़ाँ कीजिए
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
कहूँ मैं वही है साक़ी वही सुबू वही जाम
मुदाम-ए-बादा-ए-वहदत की मुझ को मस्ती है
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
बनाएगी मुरीदों को तिरे बे-ख़ौफ़ महशर में
शराब-ए-नाब-ए-वहदत से जो मस्ती है गुरु-नानक
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
शुमार ओ बे-शुमारी के तरद्दुद से गुज़र कर
मआल-ए-इश्क़-ए-वहदत के सिवा क्या रह गया है
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
अलीमुल्लाह
ग़ज़ल
खुले किस तरह पर्दा पर्दा-ए-गोश-ए-तहय्युर पर
कि बे-सौत-ओ-सदा है पर्दा साज़-ए-बज़्म-ए-वहदत का
बयान मेरठी
ग़ज़ल
चाँद पर डाले कमंदें और ख़ुद से बे-ख़बर
देखिए कोताही-ए-इदराक-ए-इंसाँ देखिए