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ग़ज़ल
मोहब्बत को हमेशा से शरीक-ए-कार देखा है
अदावत से हर इक रिश्ता यहाँ दुश्वार देखा है
अख़तर इमाम अनजुम
ग़ज़ल
मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है
जवानी और इतनी दुख भरी कैसी क़यामत है
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
रौनक़ ही नहीं उस की हम रूह-ओ-रवाँ भी हैं
लेकिन हमें दुनिया की ख़ातिर पे गराँ भी हैं
अख्तर लख़नवी
ग़ज़ल
सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े
उड़ा दूँगा किसी दिन चर्ख़ की बेदाद के टुकड़े
अख़्तर अंसारी
ग़ज़ल
नसीब अपने यहाँ तुम से बहरा-वर न हुए
तमाम उम्र कभी मर्कज़-ए-नज़र न हुए