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ग़ज़ल
उजाड़ मौसम में रेत-धरती पे फ़स्ल बोई थी चाँदनी की
अब उस में उगने लगे अँधेरे तो कैसा जी में मलाल रखना
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
गिला किस से करें अग़्यार-ए-दिल-आज़ार कितने हैं
हमें मालूम है अहबाब भी ग़म-ख़्वार कितने हैं