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ग़ज़ल
गुस्ताख़ बद-ज़बानों को जड़ से उखाड़ दो
होगा ज़रूर ख़त्म इहानत का सिलसिला
अज़ीमुद्दीन साहिल साहिल कलमनूरी
ग़ज़ल
क्यों करते हो ख़ूँ अद्ल का मंसब की इहानत
मुंसिफ़ हो तो मुजरिम को सज़ा क्यों नहीं देते
अहसन आज़मी
ग़ज़ल
'ज़हीन' इस में ख़ुद उन के हुस्न-ए-कामिल की इहानत है
भला वो और मेरे 'इश्क़ की तौहीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा'नी जान लेते हैं