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ग़ज़ल
गिल्ली डंडा कूद कब्बडी एँटी खोखो छुपा छुपी
सोंधी मिट्टी झींगुर जुगनू ख़्वाब हुआ है सब का सब
इसहाक़ असर
ग़ज़ल
दिया मैं पान उसे इक रेख़्ता पढ़ कर लगा कहने
ये ईंटी खूई का कत्था है और कंकर का चूना है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया