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ग़ज़ल
वो तग़ाफ़ुल को इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
चारा-गर भी न मिरे दर्द का दरमाँ समझा
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
जुनून-ए-इश्क़ को भी हम इलाज-ए-ग़म समझते हैं
जो दिल पर ज़ख़्म लगता है उसे मरहम समझते हैं