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ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-इल्म-ए-बे-क़दरी की हालत में नहीं मुमकिन
ख़स-ओ-ख़ाशाक होने को सदफ़ से क्यूँ नगीं निकले
ज़ाहिद चौधरी
ग़ज़ल
तमाशा-गाह है या आलम-ए-बे-रंग-ओ-बू क्या है
मैं किस से पूछने जाऊँ कि मेरे रू-ब-रू क्या है
ज़िया फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
हूँ मैं इक आशिक़-ए-बे-बाक ओ ख़राबाती ओ रिंद
मुझ से मत पूछ मिरे इल्म-ओ-अदब का अहवाल
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इल्म-ओ-फिक्र-ओ-हिकमत की शम'एँ हम जलाते हैं
फ़न्न-ए-इल्म-ओ-हिकमत में बे-हिसाब हैं हम लोग
नज़ीर नादिर
ग़ज़ल
अगर ज़मीर ग़ुलामी पे मुतमइन हो जाए
तो फिर ये ताक़त-ए-इल्म-ओ-हुनर है बे-मा'नी
डॉ अंजना सिंह सेंगर
ग़ज़ल
हम ने क्या तरक़्क़ी की कस्ब-ए-इल्म-ओ-फ़न कर के
बावजूद-ए-कोशिश भी ख़ुद को बे-हुनर पाया
नुद्रत कानपुरी
ग़ज़ल
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
सूफ़ी है वो बे-इल्म हो जो हस्ती से अपनी
किस काम पढ़ा तू ने जो यूँ इल्म-ए-तसव्वुफ़