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ग़ज़ल
ठीक उर्दू अभी लिखनी भी नहीं आई है
ऐसी कम-इल्मी पे क्या ख़ूब ये गोयाई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
तालिब-इल्म-ए-मोहब्बत जो मैं था तिफ़्ली में
थी नित आँखों की मिरे हुस्न-ए-रुख़-ए-यार से बहस
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
गर्मी-ए-पहलू यही तश्कीक ओ ला-इल्मी की आँच
ज़ौक़-ए-गुमशुदगी से हम हैं बा-ख़बर या बा-हुनर