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ग़ज़ल
दा'वा-ए-मोहब्बत है जिन्हें आज चमन से
माज़ी में वही देश के ग़द्दार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ छाले की टपक को समझाऊँ
इज़हार-ए-मोहब्बत करते हो एहसास-ए-मोहब्बत क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं