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ग़ज़ल
नाला करने को भी मुँह चाहिए अल-क़ैस-ए-हज़ीं
कोई ज़ंगूला-ए-जम्माज़ा हुदी-ख़्वाँ न हुआ
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
क़ज़ा से क़र्ज़ किस मुश्किल से ली उम्र-ए-बक़ा हम ने
मता-ए-ज़िंदगी दे कर किया ये क़र्ज़ अदा हम ने
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
निस्फ़ सद-साल से भी ज़्यादा हुई उम्र तमाम
और किस दिन के लिए उन की मसीहाई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
ज़बान-ए-'क़ैस' पे हर वक़्त तेरी बातें हैं
ज़बान-ए-क़ैस जो सीखूँ तो तुझ से बात करूँ