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ग़ज़ल
नौजवानी ला-मकानी जाँ-फ़िशानी और तुम
देर से आए मेरे लफ़्ज़ों में मा'नी और तुम
मुकेश शर्मा मनमौजी
ग़ज़ल
मैं ख़ुद ही ख़्वाब-ए-इश्क़ की ताबीर हो गया
गोया हर इक बशर तिरी तस्वीर हो गया
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
उम्र बढ़ती जा रही है ज़ीस्त घटती जाए है
जिस्म की ख़ुश्बू की ख़्वाहिश दूर हटती जाए है
कृष्ण मोहन
ग़ज़ल
कार-ज़ार आफ़ाक़ है अहल-ए-शुजाअ'त के लिए
गुलसिताँ हम-राज़ है अहल-ए-मुहब्बत के लिए