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ग़ज़ल
ख़ाक बन कर पत्तियाँ मौज-ए-हवा से जा मिलीं
देर से 'अकबर' गुलों पर क़र्ज़ पुरवाई का था
अकबर हैदराबादी
ग़ज़ल
चुप रह न सका हज़रत-ए-यज़्दाँ में भी 'इक़बाल'
करता कोई इस बंदा-ए-गुस्ताख़ का मुँह बंद