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ग़ज़ल
वफ़ा की सल्तनत इक़्लीम-ए-वादा सर-ज़मीन-ए-दिल
नज़र की ज़द में है ख़्वाबों से ताबीरों के किश्वर तक
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
वा'दा कर के भी न तुम आओ तुम्हारा इख़्तियार
हम करेंगे रात-दिन फिर भी तुम्हारा इंतिज़ार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किया है वा'दा तो फिर बज़्म-ए-रक़्स में आना
न कीजियो मुझे तुम शर्मसार होली में
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ही 'आरज़ी शय है
रहेंगे 'उम्र भर इस दिल पे चोटों के निशाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
राह-पैमायान-ए-अक़्लीम-ए-अदम से यादगार
दामन-ए-सहरा में अब बाक़ी नुक़ूश-ए-जादा हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
खुले तो सब ज़मानों के ख़ज़ाने हाथ आ जाएँ
दर-ए-इक़लीम-ए-हफ़्त-आलम है वो बंद-ए-क़बा मुझ को
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
ये भी कुछ कम नहीं ऐ रह-रव-ए-इक़लीम-ए-यक़ीं
हम ख़राबात-नशीं हुस्न-ए-गुमाँ तक पहुँचे