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ग़ज़ल
तुम्हें मातम मनाने की इजाज़त ही नहीं 'इक़रा'
शजर पत्तों के गिरने पर कभी रोया नहीं करते
रिज़्वाना बानो इक़रा
ग़ज़ल
क़ैद में गर मुझ को अपनी बाँधता रह जाएगा
मेरे रहते वो मुझी को ढूँढता रह जाएगा