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ग़ज़ल
शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
इक़रार-ए-वस्ल और वो मस्त-ए-ग़ुरूर-ए-नाज़
आया है पी के तू कहीं ऐ नामा-बर शराब
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
इक़रार-ए-वस्ल और वो मस्त-ए-ग़ुरूर-ए-नाज़
आया है पी के तू कहीं ऐ नामा-बर शराब
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
इक़रार-ए-शब-ए-वस्ल पे ये तूल अरे ज़ालिम
दम भर के भी जीने का भरोसा नहीं होता
मिर्ज़ा रहीमुद्दीन हया
ग़ज़ल
पूछा ख़िताब यार से किस तरह कीजिए शाम-ए-वस्ल
चुपके से अंदलीब ने फूल से कुछ कहा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
ऐ 'बज़्म' मुझ से करते वो इक़रार-ए-वस्ल क्या
वो तो ये कहिए उन की ज़बाँ से निकल गया
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
लुत्फ़ आए जो शब-ए-वस्ल मोअज़्ज़िन सो जाए
क्यूँकि वो गोश-बर-आवाज़ नज़र आते हैं