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ग़ज़ल
मिज़ा पे ख़ुश्क किए अश्क-ए-ना-मुराद उस ने
फिर आइने में मिरा अक्स-ए-लाला-फ़ाम रखा
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
सरापा रेहन-ए-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती
'इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
'इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक़्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया