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ग़ज़ल
गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश
तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
वो कहाँ जलवा-ए-जाँ-बख़्श बुतान-ए-देहली
क्यूँ कि जन्नत पे किया जाए गुमान-ए-देहली
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
फ़ाएदा क्या ऐसे हरजाई से मिलने में 'फ़रोग़'
हो गई दुनिया में तेरी जग-हँसाई और भी
फ़रोग़ हैदराबादी
ग़ज़ल
मुद्दई बारगाह-ए-मोहब्बत में 'फ़रताश' थे और भी
मेरा ही नाम लेकिन पुकारा गया मैं तो मारा गया
फ़रताश सय्यद
ग़ज़ल
हम साहिल की सर्द हवा में ख़्वाबों से उलझे हैं 'फ़रोग़'
और हमारे नाम का दरिया सहरा सहरा बहता है
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
हम ने फूलों से मिसरों को ख़ून-ए-दिल से यूँ सींचा
सारी उम्र ही ख़ुशबू बाँटी हम ने इत्र-फ़रोशी की
यासिर रज़ा आसिफ़
ग़ज़ल
उम्र भर कौन जवाँ रहता है जान-ए-'फ़र्रुख़'
फिर भी तुम हुस्न पे इतराते हो हद करते हो