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ग़ज़ल
देर से आँख पे उतरा नहीं अश्कों का अज़ाब
अपने ज़िम्मे है तिरा क़र्ज़ न जाने कब से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बहुत इतरा रहे हो दिल की बाज़ी जीतने पर
ज़ियाँ बा'द अज़ ज़ियाँ बा'द अज़ ज़ियाँ कैसा लगेगा