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ग़ज़ल
सुना है मेहरबाँ है वो 'अनीस' इतराते फिरते हैं
'अनीस' इतराते फिरते हैं सुना है मेहरबाँ है वो
अनीस अंसारी
ग़ज़ल
ऐ 'सफ़ी' तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर के इतराते हो क्यूँ
उम्र-भर में ये हुई है तुम से दानाई तो क्या
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
उम्र भर कौन जवाँ रहता है जान-ए-'फ़र्रुख़'
फिर भी तुम हुस्न पे इतराते हो हद करते हो
फ़र्रुख नवाज़ फ़र्रुख़
ग़ज़ल
हम अपने हाथों पे इतराते हैं मगर 'अरशद'
तिलिस्म-ए-कूज़ा-गरी चाक ही से बाँधते हैं
अरशद अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
क्या मीठे बोल सुनाते हो क्या गीत अनोखे गाते हो
क्या नग़मों पर इतराते हो झंकार नहीं तो कुछ भी नहीं
अबु मोहम्मद सहर
ग़ज़ल
वो जिन की दोस्ती पर आज इतराते हो तुम इतना
कभी अपनी भी उन लोगों से रस्म-ओ-राह थी यारो
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
मंजिल-ए-ग़ुरबत में पीछे रह गए हुशियार लोग
हम दिवाने थे बगूलों में भी इतराते रहे
नाज़िश सह्सहरामी
ग़ज़ल
अल्लह अल्लाह रे तक़्दीस-ए-मोहब्बत का फ़ुसूँ
आफ़त-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर राहत-ए-जाँ है जैसे