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ग़ज़ल
इत्तिफ़ाक़ात-ए-मोहब्बत ने ये साबित कर दिया
वो भी पेशानी में है शायद जो पेश आनी नहीं
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ छाले की टपक को समझाऊँ
इज़हार-ए-मोहब्बत करते हो एहसास-ए-मोहब्बत क्या जानो
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
दा'वा-ए-मोहब्बत है जिन्हें आज चमन से
माज़ी में वही देश के ग़द्दार रहे हैं