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ग़ज़ल
ज़हूर मिन्हास
ग़ज़ल
मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई
ये अफ़्सूँ ख़ूब असर करता है लेकिन जबकि जादूई
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
'अंजुम' यहाँ सफ़-आरा हैं जादूई संपोले
जीना है तो कर सेहर-शिकन एक असा हाथ
क़ाज़ी अब्ब्दुर्रऊफ़ अंजुम
ग़ज़ल
कोई आइने के चटख़ने पे इस दर्जा हैरान क्यों हो
वो जादूई परतव भला किस तरह कोई आईना झेले