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ग़ज़ल
मता-ए-ज़िंदगी समझा था सोज़-ए-ग़म को मैं 'हाशिम'
मिटा जाना है वो भी इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता
हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक
ग़ज़ल
ग़ज़ल सुनाई जो सर्वत को मैं ने ऐ 'हाशिम'
वो बोले सुन के सुख़न-कार इक समुंदर है
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
मुसहफ़-ए-रुख़ का तुम्हारे जो सना-ख़्वाँ होता
दिल-ए-बेताब मिरा हाफ़िज़-ए-क़ुर्आं होता
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
सुन के आवाज़-ए-अज़ाँ मिस ने ये पूछा 'हाशिम'
इस क़दर चीख़ के मस्जिद में ये क्या कहते हैं
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जाम था ख़ुम था सुबू था मजमा-ए-अहबाब था
शैख़ का इन सब में चेहरा किस क़दर शादाब था
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जब से दरिया पे हुआ प्यास का क़ब्ज़ा 'हाशिम'
लब-ए-दरिया कोई प्यासा नहीं देखा जाता
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
मैं इक ज़माने में 'हाशिम-रज़ा' पयम्बर था
मोहब्बतों का मगर साहिब-ए-किताब न था
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
मज़हब-ए-इश्क़ में जाएज़ है सभी कुछ 'हाशिम'
आज तुम जान हो कल दुश्मन-ए-जाँ होना है
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न में कल की शब 'हाशिम' रज़ा
क्या कहूँ मेरे अलावा हर कोई उस्ताद था