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ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिरा इश्क़ है बस इतना कि जगाएँ कोई फ़ित्ना
तिरे होंट बंद हो के मिरी ख़्वाहिशात खुल के
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
सहर अंसारी
ग़ज़ल
छेड़ना ताला'-ए-बेदार का अच्छा तो नहीं
ख़्वाब में आ के जगाएँ न मुझे प्यार से आप